तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)
प्रथम अध्याय (अर्जुन विषाद योग)
(छंद 29-34)
अर्जुन : (श्लोक 28-46)
मारकर धृतराष्ट्र की संतान हमको क्या मिलेगा।
पापियों को मारकर भी पाप हमको ही लगेगा।।
है नहीं सामर्थ्य मुझमें, बांधवों को मारने का।
फल अधिक मीठा मिलेगा,युद्ध फिर भी हारने का।।(29)
मानता हूँ भ्रष्ट हैं सब, लोभ में भटके हुये हैं।
स्वार्थ सबके नीतिगत अन्याय में अटके हुये हैं।।
जानते हैं किंतु हम कुलनाश है अपराध भारी।
पाप से उन्मुक्ति की क्यों रीति न अब तक विचारी।।(30)
नाश से कुल के सनातन धर्म सारे नष्ट होंगे।
हम स्वयं ही नीति के संज्ञान में पथभ्रष्ट होंगे।।
पाप के आधिक्य से कुल स्त्रियां दूषित बनेंगी।
वर्णसंकर की प्रबल संभावनाएं ही बढ़ेंगी।।(31)
नर्क के उस द्वार में कुलबेल होगी खत्म सारी।
पिण्ड, जल, तर्पण बिना क्या मुक्ति संभव है हमारी।।
नर्क भोगेंगे निरंतर, वंश का यश नष्ट होगा।
लोभ के इस युद्ध में, हे नाथ, हर पल कष्ट होगा।। (32)
शोक है, हा! शोक माधव, मति हुई है भ्रष्ट जितनी।
राज्यसुख हित वध स्वजन का,निम्न है यह सोच कितनी।
है उचित मैं त्याग दू़ँ ये शस्त्र, ये धनु-बाण अपने।
वध सुगम हो शत्रु को, फिर छोड़ दूँ मैं प्राणअपने।।(33)
संजय : (श्लोक 47)
हे महामन् ! शोक के अतिरेक से अर्जुन व्यथित है।
है भ्रमित वह, क्षीण काया, क्या गलत है, क्या उचित है।।
बैठ रथ के पृष्ठ तल में, तीव्र चिंता में घिरा है।
शीश सीने पर झुका है, गाँडीव नीचे गिरा है।।(34)
(प्रथम अध्याय समाप्त)
क्रमशः
-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव
विशेष : गीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।